अनारकली
लाहौर शहर के मध्य में मुगल काल का एक साधारण मकबरा है। जिस क्षेत्र में मकबरा स्थित है वह अनारकली बाजार के रूप में लोकप्रिय है और मकबरे को अनारकली के मकबरे के रूप में जाना जाता है। वहां एक ताबूत है। उस ताबूत पर फारसी में दो पंक्तियाँ अंकित हैं।
क्या मैं एक बार फिर अपने प्रिय का चेहरा देख सकता हूँ,
मैं पुनरुत्थान के दिन तक परमेश्वर का धन्यवाद करूंगा।
इन पंक्तियों के नीचे तीन शब्द - मजनूं सलीम अकबर - खुदे हुए हैं।
यह अनारकली कौन थी? इस प्रश्न का उत्तर देना एक कठिन कार्य है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह एक बहुत ही विवादास्पद प्रश्न है। लोग, विद्वान और इतिहासकार अपनी राय में विभाजित हैं। लाहौर में आम लोगों का मानना है कि अनारकली नाम की एक खूबसूरत दरबारी नर्तकी थी। उसका असली नाम नादिरा बेगम या सारी-उन-निस्सा था। इस अनारकली को मुगल राजकुमार से गहरा प्यार था। उनका नाम सलीम था। बाद में वे जहांगीर के नाम से प्रसिद्ध हुए। तब सलीम के पिता सम्राट थे। उनका नाम अकबर महान था। उन्होंने इस रिश्ते को अस्वीकार कर दिया। अकबर के आदेश से अनारकली को लाहौर किले की दीवारों में जिंदा दफना दिया गया। जब जहाँगीर सम्राट बना तो उसकी याद में एक मकबरा बनवाया। लेकिन ऐसी किसी अनारकली का जिक्र न तो जहाँगीर के तुजुक-ए-जहाँगीरी में मिलता है और न ही अबुल फजल के अकबरनामा में। लाहौर के इतिहासकार अब्दुल्ला चगती और मुहम्मद बाकिर ने भी इस कहानी को अफवाह बताया है। अनारकली की कहानी की उत्पत्ति दरअसल लाहौर की यात्रा करने वाले कुछ अंग्रेजी यात्रियों के यात्रा वर्णन में हुई है। ये यात्री विलियम फिंच, एडवर्ड टेरी और हर्बर्ट बिशप थे। इन यात्रियों ने अफवाहों के आधार पर अनारकली की कथा का उल्लेख अपने लेखों में किया है। इस आधार पर अनारकली की कहानी काल्पनिक लगती है।
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